जशपुर.10 सिंतबर (रमेश शर्मा)
जशपुर वन मंडल में ग्रामीण महिलाओं के समूह को चाय उत्पादन का लाभप्रद व्यवसाय से ज़ोड़ने के बाद अब यंहा के जंगलों से विलुप्त होने की कगार पर पहुंच चुकी सर्पगंधा व सतावर जैसी गैर पारंपरिक वन औषधीय को बचाने के लिए सोगड़ा और तपकरा क्षेत्र में पौधों को रोपा जा रहा है।
कीमती वनोषधि से स्थानीय वन प्रबंधन समिति को अतिरिक्त आय के साथ जड़ीबूटियों से दवा तैयार करने वाले जानकर वैद्य को भी इसका लाभ मिल सकेगा .

वन मंडल अधिकारी जितेंद्र उपाध्याय ने बताया कि जशपुर का सोगड़ा क्षेत्र में लगभग 60 हेक्टेयर मे सतावर की खेती की गई है. इसी तरह तपकरा वन परिक्षेत्र में गंजियाडीह तथा आसपास के वन क्षेत्र में औषधीय खेती को बढ़ावा देने के लिए वन प्रबंधन समिति ने पहल की है.
इस क्षेत्र में तीन स्थानों पर लगभग सौ हेक्टेयर मे सर्पगंधा का रोपण किया जा चुका है.
वन विभाग ने विलुप्त हो रही इस वनोषधि को बचाने की की पहल को स्थानीय लोगोंने एक बेहतर कदम बताया है.यंहा पर सर्पगंधा औषधीय खेती के लिए किसानों ने भी रूचि लेनी शुरू कर दी है।
जशपुर जिले के वनप्रेमी रामप्रकाश पांडेय का कहना है कि सर्पगंधा जैसी औषधीय खेती से जिले के किसानों को आर्थिक मजबूती के साथ एक नई पहचान भी मिल सकेगी।
वन विभाग का अमला व्दारा औषधीय खेती सर्पगंधा का महत्व और फायदा के संबध मे किसानों को विस्तृत जानकारी भी दे रहा है। वन मंडल अधिकारी ने बताया कि सर्पगंधा एक महत्वपूर्ण औषधि है, जो कि आधुनिक दवाइयों और आयुर्वेदिक दवाइयां बनाने के लिए प्रयोग की जाती है। इसकी जड़ें सुगन्धित होती हैं लेकिन स्वाद में कड़वी होती हैं। इसकी जड़ें विभिन्न प्रकार की दवाइयां बनाने के लिए प्रयोग की जाती हैं। सर्पगन्धा से तैयार दवा को प्रयोग घाव, बुखार, पेट का दर्द, अनिद्रा, उच्च रक्तचाप, पागलपन के इलाज में किया जाता है।
डीएफओ जितेंद्र उपाध्याय के अनुसार यह सर्पगंधा एक झाड़ी वाला पौधा है, जिसकी औसतन ऊंचाई 0.3 से 1.6 मीटर है। इसके पत्ते लम्भाकार होते है, जिसकी लम्बाई 8-15 सेमी होती हैं। इसके सख्तपन के कारण लाल लैटेराइट दोमट से रेतली जलोढ़ मिट्टी में उगाया जा सकता है। यह नमी और नाइट्रोजन युक्त मिट्टी, जिसमें जैविक तत्व मौजूद हो और अच्छे जल निकास वाले आदि स्थानों में उगाने पर अच्छे परिणाम देती है। चिकनी और चिकनी दोमट मिट्टी में भी उगाई जा सकती है।










