रुक्मणी विवाह, उद्धव संवाद प्रसंग सुन भाव विभोर हुए श्रद्धालु, भगवान श्रीकृष्ण के लगाए जयकारे
जीव और ब्रम्हा की एकता का नाम ही रास है। यह जीव ब्रम्हा के साथ दिव्य मिलन का महोत्सव हैं:जगतगुरू स्वामी रामानुजाचार्य श्री श्रीधराचार्य जी
कथा में भक्तों की रही भारी संख्या में उपस्थिति
रायगढ़।स्व. प्राणसुख दास जी व पूर्वजों के आर्शीवाद से पूर्व विधायक विजय अग्रवाल ऐरन परिवार के द्वारा पितृ मोक्षार्थ गया श्राद्धन्तर्गत होटल श्रेष्ठा रायगढ़ में आयोजित श्री भागवत महापुराण कथा के छठवें दिवस में व्यासपीठ पर आसीन जगतगुरू स्वामी रामानुजाचार्य श्री श्रीधराचार्य जी महाराज ने श्री कृष्ण विवाह उत्सव उद्धव चरित्र, रासलीला, उद्धव गोपी संवाद, रूकमणी चरित्र प्रसंग का व्याख्यान किया। उन्होंने कहा जीव और ब्रम्हा की एकता का नाम ही रास है। यह जीव ब्रम्हा के साथ दिव्य मिलन का महोत्सव हैं। रूकमणी जीव है और श्री कृष्ण ब्रम्हा है दोनों का मिलन है रूकमणी मंगल है।
भागवत कथा के छठवें दिन धुम-धाम से श्री कृष्ण रूकमणी विवाह उत्सव मनाया। इस दौरान कथा वाचक श्री श्रीधराचार्य जी महाराज ने कहा कि यह कोई साधारण विवाह नहीं था, बल्कि परमात्मा का विवाह था परमात्मा प्रेम से मिलता है रूकमणी मन ही मन परमात्मा के श्री चरणों में प्रेम करती थी लेकिन रूकमणी का बड़ा भाई रूकमणी का विवाह शिशुपाल के साथ करना चाहता था। रूकमणी कोई साधारण स्त्री नहीं थी वह साक्षात महालक्ष्मी का अवतार थी और जब रूकमणी ने देखा कि भाई हट पूर्वक विवाह शिशुपाल के साथ कराना चाहते हैं जिससे मेरे पिता की इच्छा नहीं है, तो रूकमणी ने एक ब्राह्मण के माध्यम से परमात्मा श्री कृष्ण के पास इस संदेश को भेजा। इस संदेश में रूकमणी ने कहा कि परमात्मा मैं जन्म जन्मांतरो से आपके श्री चरणों की दासी हूँ। आप मुझ पर कृपा कर मुझे अपने चरणों में आश्रय देने की कृपा करें। जब यह संदेश परमात्मा श्री कृष्ण को प्राप्त हुआ तो उन्होंने ब्राह्मण को ससम्मान विदा कर स्वयं पिछे से कुंडलपुर के लिए चले इधर रूकमणी जी मन में विचार करती है कि वह ब्राह्मण परमात्मा के पास मेरा संदेश लेकर पहुंचा अथवा नही तभी उन्होंने देखा कि जिस ब्राह्मण को उन्होंने द्वारिका भेजा था वह ब्राह्मण लौटकर आ गया। रूकमणी के पुछने पर उसने बताया कि परमात्मा श्री कृष्ण ने आपका का संदेश सुन लिया है और वे कुंडलपुर आ रहे हैं। कुछ ही समय के बाद श्री कृष्ण कुंडलपुर को आते हैं। रूकमणी के पिता भीष्मक को जब यह बात पता चलती है तो उनकी प्रसन्नता का ठिकाना नहीं रहता है वे बड़े प्रसन्न होते हैं।
संगीतमय श्रीमद् भागवत कथा के छठवें दिन ने महारास प्रसंग एवं उद्धव संवाद व रुक्मणी विवाह के प्रसंग का सुंदर वर्णन किया। इस अवसर श्री श्रीधराचार्य महाराज जी ने रास पंच अध्याय का वर्णन करते हुए कहा कि महारास में पांच अध्याय हैं। उनमें गाए जाने वाले पंच गीत भागवत के पंच प्राण हैं। जो भी ठाकुरजी के इन पांच गीतों को भाव से गाता है, वह भव पार हो जाता है। उन्हें वृंदावन की भक्ति सहज प्राप्त हो जाती है।
वही कथा में भगवान का मथुरा प्रस्थान, कंस का वध, महर्षि संदीपनी के आश्रम में विद्या ग्रहण करना, कल्यवान का वध, उद्धव गोपी संवाद, ऊद्धव द्वारा गोपियों को अपना गुरु बनाना, द्वारका की स्थापना एवं रुक्मणी विवाह के प्रसंग का संगीतमय कथा का श्रवण कराया गया।
उन्होंने ने कहा कि महारास में भगवान श्रीकृष्ण ने बांसुरी बजाकर गोपियों का आह्वान किया और महारास लीला द्वारा ही जीवात्मा का परमात्मा से मिलन हुआ।
कथावाचक श्री श्रीधराचार्य जी महाराज ने भागवत कथा के महत्व को बताते हुए कहा कि जो भक्त प्रेमी कृष्ण-रुक्मणी के विवाह उत्सव में शामिल होते हैं उनकी वैवाहिक समस्या हमेशा के लिए समाप्त हो जाती है। कथा वाचक ने कहा कि जीव परमात्मा का अंश है। इसलिए जीव के अंदर अपार शक्ति रहती है। यदि कोई कमी रहती है, तो वह मात्र संकल्प की होती है। संकल्प एवं कपट रहित होने से प्रभु उसे निश्चित रूप से पूरा करेंगे।
भागवत कथा में कथावाचक श्री श्रीधराचार्य जी महाराज ने कहा कि दूसरे की पीड़ा को समझने वाला और मुसीबत में दूसरों की सहायता करने के समान कोई पुण्य नहीं है। अत: जीव को धन, प्रतिष्ठा के साथ सामाजिक कार्यों में सेवा करनी चाहिए। उन्होंने ने कथा में उद्धव चरित्र का वर्णन किया। उद्धव साक्षात ब्रहस्पति के शिष्य थे। मथुरा प्रवास में जब श्री कृष्ण को अपने माता-पिता तथा गोपियों के विरह दुख का स्मरण होता है तो उद्धव को नंदवक गोकुल भेजते है। गोपियों के वियोग-ताप को शांत करने का आदेश देते है। उद्धव सहर्ष कृष्ण का संदेश लेकर ब्रज जाते है और नंदिदि गोपों तथा गोपियों को प्रसन्न करते हैं और श्री कृष्ण जी के प्रति गोपियों के कांता भाव के अनन्य अनुराग को प्रत्यक्ष देखकर उद्धव अत्यंत प्रभावित होते है। वे श्री कृष्ण का यह संदेश सुनाते हैं कि तुम्हे मेरा वियोग कभी नहीं हो सकता,क्योंकि मैं आत्मरूप हूॅं। सदैव मेरे ध्यान में लीन रहो। तुम सब शून्य शुद्ध मन से मुझ में अनुरक्त रहकर मेरा ध्यान करने में शीघ्र ही मुझे प्राप्त करोगी। श्रीमद् भागवत कथा का संगीतमय वातावरण को भक्तिमय बना दिया। उपस्थित भक्तजन नाचने पर मजबूर होकर भगवान कृष्ण का गुणगान किया। शहर के होटल श्रेष्ठा में आयोजित कथा स्थल में श्री मद्भागवत कथा में शहर के नगर वासियों की बहुत अधिक भागीदारी रही और सब ने आनंदमय भक्तिमय वातावरण में श्री कृष्ण जी की भक्ति में डूबकर कथा का श्रवण किया।