छत्तीसगढ़ के प्रथम एवं पूर्व कलेक्टर वर्तमान प्रदेश भाजपा महामंत्री
भारत के संदर्भ में 7 वर्ष पहले जब डिजिटल इंडिया की बात की गई तो मजाक उड़ाया गया समस्याएं गिना कर इसे अव्यवहारिक बताकर खारिज किया गया l लेकिन महज 7 सालों में डिजिटल क्रांति के माध्यम से देश भर में हुए बदलाव ने न केवल देशवासियों को बल्कि पूरे विश्व को चकित किया l आज स्थिति यह है की कोई ठेलावाला हो या पान दुकान वाला,एक रिक्शा चालक हो या हाट बाजार में धनिया बेचने वाला सबके हाथो में स्मार्ट फोन है और सभी अपने लेनदेन का भुगतान डिजिटल माध्यम से सहजता के साथ कर रहे है | औपचारिक शिक्षा की तमाम सीमाओं और डिजिटल डिवाइड की बड़ी बहस के बीच भारतीय जनमानस के इन सभी वर्गों ने अपने टेक-सेवी होने का बड़ा प्रमाण देकर पूरी दुनिया को चौंकाया है l
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 1 जुलाई 2015 को डिजिटल इंडिया अभियान की शुरुआत की।इस योजना का मुख्य उद्देश्य एक ओर सरकारी विभागों और देश की जनता के बीच तकनीकी आधारित,पेपर लेस संबंध स्थापित करना है।वहीं दूसरी ओर पूरे देश में आम लोगों और निजी क्षेत्र में भी एक क्रांतिकारी तकनीकी परिवर्तन का सूत्रपात करना भी है।
डिजिटल इंडिया के तीन मुख्य घटक हैं l डिजिटल आधारभूत ढाँचे का निर्माण करना, इलेक्ट्रॉनिक रूप से सेवाओं को जनता तक पहुंचाना और जन सामान्य के बीच डिजिटल साक्षरता को बढ़ावा देना।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का विजन बदलते विश्व में भारत को आगे बढ़ाने के लिये आधुनिक तकनीकों की अनिवार्यता के संबंध में सुस्पष्ट है।वे स्वयं भी नयी तकनीकों का बखूबी इस्तेमाल करते हैं।प्रधानमंत्री बनने के पूर्व 2013-14 में ही उन्होंने वर्चुअल रैली, सोशल मीडिया और होलोग्राम जैसे नयी तकनीकों का भरपूर उपयोग करके अपने चुनावी अभियान को आगे बढ़ाया था,जो उस समय बिल्कुल असामान्य बात थी।अपने तकनीकी उन्मुख विजन के अनुसार उन्होंने मुख्यमंत्री रहते हुये और प्रधानमंत्री बनने के बाद डिजिटल माध्यमों को देशहित में प्रयोग करने के लिए योजनाबद्ध और क्रांतिकारी तरीके से काम किया |
“डिजिटल इंडिया” मिशन का सूत्र वाक्य है- ‘पावर टू इमपावर’।तकनीकी स्वयं में एक पावर तो है,लेकिन उसका प्रयोग आम लोगों को इमपावर करने में करना,किसी भी नीति निर्माता के विजन पर निर्भर करता है।
सिस्टम और सुविधाओं के बीच गैप खत्म करना समय की मांग है।डिजिटल इंडिया ने यह कैसे संभव किया है,इसका शानदार उदाहरण ‘डिजीलॉकर’ है।सभी पहचान पत्र एवं अन्य जरूरी दस्तावेज इसमें सुरक्षित रहते हैं।कोविड महामारी के समय कई शहरों के शैक्षणिक संस्थाओं में इसी की मदद से वेरिफिकेशन किया गया| बिजली-पानी का बिल भरना हो या इनकम टैक्स का भुगतान, डिजिटल इंडिया के माध्यम से सब काफी आसान और तेज हो गया है।गरीबों को राशन देने के लिये अब एक ही कार्ड पूरे देश में मान्य हो रहा है।’स्वामित्व योजना’ से जमीनों की ड्रोन मैपिंग की जा रही है।लॉकडाउन के दौरान जब सभी शिक्षण संस्थान बंद पड़े थे,तब घर बैठे बच्चे डिजिटल इंडिया के माध्यम से ही अपनी पढाई को जारी रख पाये।आज भी ऑनलाइन क्लास महानगरों और गांव-कस्बों के बीच के भेद को समाप्त कर रहा है।कोविड के दौरान दुनिया के सबसे बड़े कांटेक्ट ट्रेसिंग स्वदेशी एप ‘आरोग्य सेतु’ से 22 करोड़ लोग जुड़े और संक्रमण को रोकने में बड़ी मदद मिली।CoWin ऐप में 110 करोड़ लोग जुड़कर अपने टीके का रजिस्ट्रेशन कराके ऑनलाइन प्रमाण पत्र प्राप्त कर रहे हैं।आज सरकार ने GEM: गवर्नमेंट-ई-मार्केटप्लेस पोर्टल के जरिये सरकारी खरीदी प्रक्रिया को पारदर्शी बनाया है।इसमें 50 लाख से अधिक आपूर्तिकर्ताओं के रजिस्ट्रेशन हो चुके हैं।ऑनलाइन रेलवे टिकट पोर्टल आईआरसीटीसी पर प्रति दिन लगभग 15 लाख लोग ऑनलाइन टिकट बुक करा रहे हैं,इससे पारदर्शिता बढ़ी है और रेलवे टिकटों के गड़बड़झाले पर लगाम लगा है।डिजिटल क्रांति का ही परिणाम है कि आज भारत का आम नागरिक घर बैठे शेयर मार्केट में हिस्सा ले रहा है और भारत के शेयर मार्केट में घरेलू रिटेलर एक बड़ी ताकत बनकर उभरा है।
केंद्र सरकार द्वारा भेजी गई रकम भी डीबीटी के जरिये सीधे हितग्राहियों के खाते में पहुँच रही है।पिछले 4 सालों के आँकड़ों को देखें तो कुल 2258 करोड़ बार हितग्राहियों के खाते में कुल 20 लाख 77 हजार करोड़ रुपए भेजे गये। देश के पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी जी कहा करते थे कि दिल्ली से जनता के लिए 1 रुपया भेजता हुँ तो जनता तक 15 पैसा ही पहुँचता है।आज देश में डंके की चोट पर यह दावा किया जा सकता है कि मोदी जी 1 रुपया किसी हितग्राही के खाते में भेजते हैं तो हितग्राही को पूरा 1 रुपया मिल जाता है।यह केवल डिजिटल इंडिया और JAM:जनधन आधार और मोबाइल के मर्जिंग की रणनीति से ही संभव हो सका है।
पूरी दुनिया का 40 प्रतिशत रियल टाइम डिजिटल पेमेंट आज अकेले भारत में ही हो रहा है।और चीन और अमेरिका जैसे विकसित देशों को पीछे छोड़कर भारत पहले नम्बर पर पहुँच चुका है।भारत सरकार द्वारा यूपीआई की शुरुआत इस दिशा में एक बड़ा गेम चेंजर साबित हुआ है।हाल ही में विश्व की प्रसिद्ध टेक कंपनी गूगल ने अमेरिका के फेडरल रिजर्व बोर्ड को डिजिटल पेमेंट के लिये भारत के यूपीआई जैसे प्लेट फार्म के उपयोग की सलाह दी।आंकड़ों पर नजर डालें तो वर्ष 2014-15 में डिजिटल ट्रांजेक्शन की संख्या 440 करोड़ थी,जो वर्ष 2021-22 में बढ़कर 7228 करोड़ हो गई।अगर राशि की बात करें तो यह आंकड़ा जहाँ वर्ष 2014-15 में 76.1 लाख करोड़ रूपये था ,जो वर्ष दर वर्ष 2021-22 तक बढ़कर 234.6 लाख करोड़ रूपये हो गया।
इतना बड़ा परिवर्तन आखिर संभव कैसे हुआ ?इस परिवर्तन के पीछे एक बड़ी सोच के साथ की गयी मोबाइल और इंटरनेट की क्रांति है।आज भारत में 45 करोड़ से अधिक स्मार्ट फोन उपयोगकर्त्ता हैं l ,यह संख्या वर्ष 2030 तक 100 करोड़ पार हों जाने का अनुमान है।देश में 2014 में महज 18 करोड़ 80 लाख इंटरनेट उपयोगकर्त्ता थे,यह संख्या 2021 में 83 करोड़ पहुँच गयी और 2025 तक यह संख्या 90 करोड़ को पार कर जायेगी।2014 में हमारे देश में महज 2 मोबाइल उत्पादक कंपनियाँ हुआ करती थीं,आज 200 से अधिक कंपनियों के साथ हम दुनिया के दूसरे सबसे बड़े मोबाइल उत्पादक देश बन गये हैं।इसके पीछे सरकार की पीएलआई स्कीम,मेक इन इंडिया,मेक फार वर्ल्ड की रणनीतियों का योगदान है।
डिजिटल इंडिया मिशन में कई चुनौतियों को भी ध्यान रखना होगा।पूरे देश भर में डिजिटल इंफ्रास्ट्रक्चर को खड़ा करना, विशेषकर जम्मू कश्मीर,नार्थ ईस्ट,नक्सल प्रभावित क्षेत्रों,दुरूह गांवों तक इंटरनेट इंफ्रास्ट्रक्चर का जाल बिछाना।दूसरा डिजिटल डिवाइड को समाप्त करना और तीसरा साइबर क्राइम की उभरती चुनौतियों से निपटना।भारत सरकार इन चुनौतियों के मद्देनजर भी सजगता से कार्य कर रही है।
वित्तमंत्री निर्मला सीतारमण जी द्वारा प्रस्तुत आंकड़ों के आकलन के अनुसार भारत में डिजिटल अर्थव्यवस्था 2020 में 85-90 अरब अमेरिकी डॉलर तक थी और इसके 2030 तक बढ़कर 800 अरब अमेरिकी डॉलर होने की उम्मीद है।हम कह सकते हैं कि इस मिशन की भावी संभावनायें असीम हैं।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की दूर दृष्टि का ही परिणाम है कि आज डिजिटल इंडिया देश को प्रगति के पथ पर आगे ले जाने में मील का पत्थर साबित हुआ है।डिजिटल पावर से लोगों को इमपावर करके इस मिशन के सूत्र वाक्य “पावर टू इमपावर” को वास्तविक अर्थों में चरितार्थ किया गया है।साथ ही हमें डिजिटल डिवाइड के खतरों से भी देश को बचाना है,ताकि समावेशी विकास को वास्तविक अर्थों में चरितार्थ किया जा सके।










