तमनार- गारे पालमा सेक्टर 01 के पर्यावरणनीय स्वीकृति को लेकर आयोजित लोक सुनवाई 08 दिसंबर 2025 के विरोध में कुछ गाँव के लोगों द्वारा जारी विरोध न केवल तमनारांचल तक सीमित न रहकर राज्य के समग्र विकास के मार्ग में बाधक बनता जा रहा है। इस परियोजना से क्षेत्र में औद्योगिक निवेश, रोजगार सृजन, आधारभूत संरचना के विकास तथा राजस्व वृद्धि की व्यापक संभावनाएँ जुड़ी हुई हैं, जिस पर ग्रामीणों के विरोध के कारण प्रतिकूल प्रभाव पड़ रहा है।
गौरतलब हो कि गारे पालमा सेक्टर 01 जैसी परियोजनाएँ 2000 से 3000 स्थानीय युवाओं को प्रत्यक्ष व अप्रत्यक्ष रोजगार उपलब्ध करायेगी। शिक्षा के क्षेत्र सर्व सुविधायुक्त स्कूलों की स्थापना से विद्यार्थियों को नये अवसर मिलेंगे। जिससे पलायन पर अंकुश लगता है। साथ ही सड़क, स्वास्थ्य और अन्य जनोपयोगी सुविधाओं के विस्तार का मार्ग प्रशस्त होगा। इसके विपरीत, ग्रामीणों द्वारा जिस प्रकार निरंतर विरोध किया जा रहा है, इससेन केवल जिंदल समूह बल्कि अन्य निवेशकों का भरोसा कमजोर होता जा रहा है और राज्य की औद्योगिक प्रगति की जो सपने क्षेत्र वासी राज्यवासी देखने लगे थे अब वे सारे सपने बिखरते प्रतीत हो रहे हैं।
वहीं स्थानीय जनप्रतिनिधियों, बुद्धिजीवियों एवं क्षेत्र के शुभचिंतकों का मानना है कि कहीं जिंदल समूह ग्रामीणों के नाजायज विरोधों से हताश होकर कही परियोजना से मुँह न मोड़ ले। वहीं ग्रामीण ये भी अच्छे से समझ चुके हैं कुछ स्थानीय स्वार्थपरक नेता अपने राजनैतिक स्वार्थ की पुर्ति के लिये ग्रामीणें को भ्रमित व बरगलाने में किसी भी प्रकार का कोई मौका नहीं छोड़ रहे हैं।
ज्ञातव्य हो जिस प्रकार का गतिरोध ग्रामीणों और संस्थान के मध्य निर्मित हो रहा है आम जनमानस में भी भय की स्थिति निर्मित है रही हैं कि तमनारांचल भी बंगाल का सिंगर न बन जाए। ठीक ऐसा ही विरोध कुछ वर्षों पहले टाटा कंपनी के नैनो परियोजना के विरुद्ध ग्रामीणों ने निर्मित किया था। इस विरोध से परेशान होकर टाटा कंपनी ने अपने इस बहुउद्देश्य लोकोपयोगी परियोजना को बंगाल के सिंगर से हटाकर गुजरात में शिफ्ट कर दिया था। नतीजा सबके सामने है, आज गुजरात में जहाँ विकास कि गंगा बहुत रही हैं, वहीं बंगाल की स्थिति सबके सामने है। अतः क्षेत्र की आम जनता एकलय में यह चाहती हैं कि पर्यावरण संरक्षण एवं के क्षेत्र के सर्वांगीण विकास की सोच के बीच संतुलन बनाते हुए संवाद के माध्यम से समाधान निकाला जाना चाहिए। जनसुनवाई एवं वैधानिक प्रक्रियाओं के तहत उठाई गई शंकाओं का निराकरण संभव है, किंतु पूर्ण विरोध की नीति से क्षेत्र को दीर्घकालिक नुकसान में झांेक देगी। आवश्यक है कि सभी पक्ष तथ्यों के आधार पर सकारात्मक चर्चा करें, ताकि तमनार अंचल के साथ-साथ राज्य के आर्थिक विकास, रोजगार सृजन और सामाजिक उन्नयन की संभावनाएँ साकार हो सकें। क्षेत्र की भोली भाली जनता सर्वगीण विकास का मार्ग चुनेंगे न कि कुछ स्वार्थी तत्वों के बहकावे में आकर भोली भाली जनता कहीं छली ना जाये। क्षेत्र की शुभचिंतकों को स्वविवेक का प्रयोग करते हुए क्षेत्र के विकास का चयन करना चाहिए न कि सिंगूर जैसी स्थिति निर्मित करने में विश्वास करना चाहिए। कहीं ऐसा न हो विरोधों के परे कंपनी कहीं परियोजना से पीछे हटने के पक्ष में तो नहीं!
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